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Episode 188

शौर्य और विग्रह आपस में गले लग गए और फ़िर इकलौते जमाई राजा को आदर स्वागत के साथ घर के अंदर ले जाने लगे। वह इतना बड़ा शहर नहीं था और छोटा गांव भी नहीं था लेकिन वहां के लोग विग्रह को बहुत घूर रहे थे क्योंकि वह उन सब से बहुत अलग-लग रहा था क्योंकि वह बहुत ज्यादा हैंडसम दिख रहा था और एकदम शालीन लग रहा था हालांकि विग्रह को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि सब लोग उसे घूर रहे थे वो बस अपनी पत्नी को ढूंढ रहा था कल रात से वह सोया नहीं है उसके दिमाग में सिर्फ शर्वाणी घूम रही थी और उसकी कहीं बात घूम रही थी कि वह भी विग्रह से प्यार करती है। विग्रह जल्दी उसके लिए ही तो आया है ताकि आज का पूरा दिन गांव में शर्वाणी के साथ बिताए और जैसे ही मौका मिले उसे अपने साथ कहीं दूर खेतों में ले जाए और जी भर के उसे अपनी बाहों में भर ले।

राज सर घर के अंदर आएं। उन्हें देखते ही सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई और सब लोग उनके सामने आ गए। विग्रह सभी से बड़े आदर और सौम्यता से मिल रहा था। जबकि सब लोग असहज महसूस कर रहे थे कि इतने ऊंचे खानदान का चिराग इस तरह उनके पैर छू रहा है। सच विग्रह के माता पिता के संस्कार उच्च है तभी तो उन्होंने हीरे को जन्म दिया है। विग्रह उस घर के आंगन के बीचों-बीच खड़ा था तभी उसे तुलसी मैया का पौधा नजर आया। विग्रह तुरंत उसके पास आकर प्रणाम करने लगा। उसका ऐसा रूप देखकर सब की खुशी का ठिकाना नहीं रहा अब सबको लग रहा था कि लव मैरिज इतनी भी बुरी नहीं गोटी अगर लड़का सही मिल जाएं तो। सबके दिल में विग्रह के प्रति सम्मान बढ़ता जा रहा था। विक्रम जी तो पहले ही वहां से चले गए थे मगर दूसरी मंजिल पर पिलर के पीछे खड़े होकर नीचे खड़े विग्रह को देखे जा रहे थे। वहीं श्रवण जी ने विग्रह राज को आदर से चेयर पर बिठा दिया।

विग्रह चेयर पर बैठा हुआ सबसे बातचीत कर रहा था मगर उसकी भूरी जुनूनी निगाहें अपनी पत्नी को ढूंढे जा रही थी कि कब वो सामने आएगी और उसका दीदार होगा और राज सर के दिल को सुकून मिलेगा। शर्वाणी तो रसोईघर में छुपी हुई थी हिम्मत ही नहीं थी पति के सामने जाने की कल रात को प्रेम का इज़हार जो कर बैठी है अब न जाने पतिदेव उसे किन नजरों से देखेंगे। शर्वाणी रसोई में खड़ी शरमा रही थी घबरा रही थी तभी दीपिका जी रसोई में आई और बोली -

अरे आप यहां खड़ी हैं बाहर जमाई सा आएं हैं जाइए उनके लिए पानी लेकर..!!

ये सुनते ही शर्वाणी बेचैनी से बोली-

मम्मी !! प्लीज़ किसी और को भेज दीजिए न हम अभी थोड़ा दूसरा काम देख लेते हैं..!!

दीपिका जी ने गहरी सांस ली और पानी का ग्लास किसी और के लिए भिजवा दिया। विग्रह की खातिरदारी अच्छे से चल रही थी कोई कमी नहीं आने दी जा रही थी। मामा जी बोले-

जमाई सा। आपके लिए चाय बनवा दे?

विग्रह- जी माफी चाहते है मगर हम चाय नहीं कॉफी पीते है तो एक कप कॉफी बनवा दीजिए..!!

मामा जी ने दीपिका जी की तरफ देखा और वे जल्दी से किचन में आकर शर्वाणी से कॉफी बनाने के लिए बोली मगर कॉफी घर में थी ही नहीं। ये देखकर दीपिका जी और मामी जी चिंतित होकर बोली-

हे भगवान !!! इस कॉफी को भी आज ही खत्म होना था अब जमाई सा के सामने हमारी नाक कट जाएगी.. ऐसा करते हैं शौर्य से कॉफी. मंगवा देते है..!!

दीपिका ने बाहर आई और शौर्य को इशारा करके एक तरफ बुलाया जिसे विग्रह ने देख लिया। दीपिका ने भले ही धीमी आवाज में बोल रही थी लेकिन विग्रह ने सब कुछ सुन लिया और दीपिका जी के पास आकर धीमी आवाज में बोला-

रहने दीजिए मम्मी! कॉफी की इतनी भी जरूरत नहीं है ऐसा कीजिए अपनी बेटी के हाथ की चाय ही पिला दीजिए आज तो..!!

दीपिका जी मुस्कराने लगी और रसोई में जाकर शर्वाणी से चाय बनाने के लिए कहा। शर्वाणी काफ़ी हैरान थी मगर उसने जल्दी से चाय बना कर दीपिका जी को थमा दी और खुद खाने की तैयारी करने लगी। इस बार विग्रह को लगा कि चाय लेकर तो उसकी पत्नी ही आएगी लेकिन हुआ उल्टा चाय लेकर उसकी सु में यह देखकर विग्रह सब समझ गया कि वह लड़की जानबूझकर सामने नहीं आ रही है लेकिन कब तक छुपेगी कभी ना कभी तो सामने आना ही पड़ेगा और अब तो विग्रह वैसे भी आज पूरे दिन और रात यहीं पर है तो शेरवानी कब तक उससे दूर भागेगी राज सर ने चाय पी और चाय उनकी पत्नी ने बनाई थी तो बस चाय पीने का भी उन्हें बहुत मजा आ रहा था अब समय दोपहर के भजन का तो पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग भोजन की व्यवस्था की गई थी घर के एक कक्ष में पुरुषों का भजन चल रहा था और दूसरे कक्ष में महिलाओं का चल रहा था शेरवानी महिलाओं के कक्ष में थी और विग्रह अपने साले साहब दादा ससुर और मामा जी के साथ में पुरुषों के कक्ष में भोजन कर रहा था भोजन जमीन पर आसान बेचकर करवाया जा रहा था क्योंकि पारंपरिक तरीका है और सबसे बेस्ट तरीका है भोजन करने का इससे पाचन प्रक्रिया बहुत अच्छे से होती है हमारे धर्म में तो जमीन पर बैठकर ही खाने को उचित माना गया है।

भोजन हो जाने के बाद शौर्य विग्रह को वाशबेसिन के पास ले आया हाथ धुलवाना के लिए। घर में वो एक ही बड़ा और मुख्य वाशबेसिन था जहां हाथ धोने के लिए भी भीड़ इकट्ठा हो रखी थी मगर जमाई सा को तो विशेष सम्मान दिया जाता है। शौर्य विग्रह को लेकर घर के आंगन में आ गया और लकड़ी के पौराणिक कला से बने सोफे पर वो दोनों बैठे हुए थे और आपस में कुछ बातचीत कर रहे थे। दादा जी तो जरूरी काम से बाहर गए हुए थे वही मामा जी विवाह की तैयारी में जुटे हुए थे और विक्रम जी तो वैसे भी विग्रह से दूर ही रहते हैं तो उनका कोई मतलब ही नहीं था। काफी देर तक अपने आप पर कंट्रोल करने के बाद में विग्रह इधर उधर देखते हुए बोला-

वैसे आपकी बहन कहां है क्या उसके पास ऐसी कोई शक्ति है कि वह गायब हो जाती है??

ये सुनते ही शौर्य हंसते हुए बोला-

ऐसी कोई शक्ति तो नहीं है उसके पास लेकिन वो ऐसे ही तितली की तरह घूमती रहती है जब से वो यहां पर आई है कुछ ना कुछ काम कर रही है अभी शायद वह भैया के कोई सामान पैक

कर रही है..!!

विग्रह - कहां पर है वो?

शौर्य - शायद ऊपर भैया के कमरे में है आप कहे तो हम उन्हें भुला दे..!!

विग्रह कुछ सोचते हुए बोला -

अच्छा नहीं लगता इस तरह बुलाना अच्छा ये बताइए कि इस गांव में कोई ज़मीन ऐसी है जो बिकाऊ हो और हाइवे से टच होती हो..!!

शौर्य हा हा इस गांव की काफ़ी जमीनें बिकाऊ हैं जिन पर इन्वेस्टमेंट भी अच्छा होगा.. ऐसा करते है हम दोनों गांव टहल आते है वैसे भी आज कोई खास रस्में नहीं होंगी..!!

विग्रह ने हा कहा और दोनों साला जीजा दादा जी मिलकर गांव की सैर के लिए निकल गए। विग्रह बाहर गया है ये जानकर शर्वाणी उदास हो गई और इस समय घर के छोटे से बगीचे में घास पर आलती पालती लगाकर बैठी फूलों की माला बना रही थी तभी विक्रम जी वहां पर आएं और उसके पास चेयर पर बैठते हुए बोले-

चाय पी लो शर्वाणी !!

शर्वाणी ने उनके हाथ से चाय का कप लिया और माला बनाते हुए बोली-

पापा!!! आप कहां चले गए थे??

विक्रम जी अपने पुराने मित्र से मिलने गए थे..!!

शर्वाणी अच्छा लेकिन मित्र जमाई से बढ़कर तो नहीं होता है.. अबकी से जब आपके जमाई आयेंगे तो एक बार उनसे मिल लीजिएगा उन्हें भी अच्छा लगेगा..!!

विक्रम जी को गुस्सा आने से मगर वे अपनी बेटी का मूड खराब नहीं करना चाहते थे इसलिए बोले-

आप अपने पति का पक्ष लेकर अच्छी बात कर रही है बेटा लेकिन क्या उन्हें हमसे मिलने के लिए नहीं आना चाहिए था पिछले तीन-चार घंटे से वह यहां पर एक बार भी हमसे मिलना है उन्होंने हमारे बारे में पूछा नहीं ना तो हम बड़े होकर उनके सामने कैसे जाएंगे अब सामने से उनसे मिलेंगे क्या..??

शर्वाणी- अरे पापा कैसी बातें कर रहे हैं बात यहां बड़े छोटे की नहीं है बात है इस घर के जमाने की समझने की कोशिश कीजिए जब से विवाह हुआ है आप एक बार भी उनसे ढंग से नहीं मिले हैं उन्होंने कई बार कोशिश की है आपसे मिलने की लेकिन जब आप सामने से कोई रिस्पांस नहीं देंगे तुम वह कितनी बार कोशिश करेंगे अभी मैं जब आए तब आप तुरंत आंगन से गायब हो गए आपको क्या लगता है सब लोग देखते नहीं है बेज्जती हमारी ही हो रही है उनकी नहीं हो रही क्योंकि उनसे तो सब लोग बहुत प्यार करते हैं अभी जब मैं घर आएंगे तब आप एक बार उनसे बात कर लेना हमारे लिए ठीक है..!!

ना चाहते हुए भी विक्रम जी ने हा कहा और बोले-

अभी कुछ समय तक आप अपने पापा के साथ वक्त बताएंगे सिर्फ हम दोनों के बारे में बात करेंगे बार-बार अपने पति को बीच में नहीं लेंगे शेरवानी मुस्कुराते हुए बोली हां पापा आराम से बातें कीजिए वैसे भी आपके जमाई अभी घर पर नहीं है वह बाहर गए हुए हैं..!!

शर्वाणी के इतना कहते ही उन दोनों के कानों में रेंज रोवर गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया। जिसे सुनते ही शर्वाणी तुरंत अपनी जगह से खड़ी हुई उसने सिर पर पल्लू लिया और बगीचे से बाहर निकल कर घर के अंदर जाने लगी तभी किसी ने सच्ची शिद्दत और जुनून से कहा-

राजा!!!!!

ये दिलकश और आकर्षक आवाज सुनते ही शर्वाणी के कदम जम गए और दिल की धड़कनें तेज हो गई। वो अपने कदम आगे बढ़ा ही नहीं पा रही थी और तन बदन की प्रसन्नता उसके बस में नहीं थी। अब पति से नज़रे कैसे मिला पाएगी? उनसे क्या कहेंगी? उनके सवालों का जवाब किस प्रकार देंगी? यहीं सब सोचे जा रही थी शौर्य उसके सामने आकर बोला-

जीजी!!! कहां खोई हो जीजा सा आपको बुला रहे है..!!

शर्वाणी ने अपनी मुठ्ठी भींच ली और नज़रे झुका कर धीमी आवाज में बोली-

आप उन्हें बिठाइए हम आप दोनों के बीच पानी लेकर आते हैं..!!

इतना कहकर शर्वाणी तुरंत घर में चली। उसे जाते देख राज सर अपनी कार से टिक कर खड़े हो गए बेहद आकर्षक तरीके से मुस्कुराते हुए अपनी दादी मसलने लगा। शौर्य उसके पास आकर बोला -

आइए जीजा सा!! हम अंदर बैठकर बात करते हैं..!!

विग्रह उसके साथ घर के अंदर चला गया। उनके जाते ही विक्रम ने बगीचे से बाहर आएं और गुस्से से बोले-

ये इंसान हमेशा हमें हमारी बेटी से दूर कर देता है.. जैसे ही शर्वाणी हमसे बात करती है पता नहीं कहा है ये इंसान बीच में आ जाता है लगता है ये बाप बेटी को अलग करना चाहते है जानबूझ कर ऐसा कर रहे है लेकिन हम अपनी बेटी को कभी स्वयं से दूर नहीं होने देंगे..!!

विग्रह आंगन में चारपाई पर बैठा हुआ था और अपना फोन चेक कर रहा था जिस पर सुबह से नेटवर्क नहीं आ रहा था। उसे चारपाई पर बैठा देख दूर खड़े सुरेश जी अपनी बहन दीपिका जी से बोले-

जमाई सा आज रात यहीं रुकने वाले हैं तो इन्हें और शर्वाणी को अलग से कमरे देना होगा मगर सारे कमरों में तो मेहमान है ऐसे में जमाई सा और शर्वाणी को कहां सुलाएंगे??

दीपिका जी हमें तो चिंता हो रही है कि कहीं जमाई सा बुरा ना मान जाएं वैसे भी जैसी सुख सुविधा उनके महल में होती हैं वैसी यहां तो है ही नहीं.. ऐसा करते है हम शर्वाणी से बात करते है यो क्या कहती हैं...!!

दीपिका जी रसोई में आई जहां शर्वाणी शाम के भोजन की व्यवस्था देख रही थी। दीपिका जी चिंतित होकर बोली-

शर्वाणी!!! जमाई सा के सोने की व्यवस्था कैसे करनी है कोई भी कमरा खाली नहीं है आप दोनों के लिए..!!

शर्वाणी पतीले में चावल चढ़ाते हुए बोली-

मम्मी !! एक मर्द कहीं भी सो सकते हैं उन्हें दादा जी के साथ सुला देते हैं और हम तो वैसे भी छत पर सोएंगे..!!

दीपिका जी- पागल हो क्या? पति पत्नी को साथ में सोना चाहिए..!!

शर्वाणी नज़रे चुराते हुए बोली-

मम्मी!! प्लीज़ मायके में ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है हम उनके साथ नहीं जा रहे हमें शर्म आती है..!!

दीपिका जी ने अपना सिर पीट लिया वहीं रसोईघर के दरवाजे के पीछे खड़े राज सर ने ये सब कुछ सुन लिया और तुरंत दरवाजे पर आकर खड़े हो गए और अपनी भारी मर्दाना आवाज़ में आदर से बोले-

मम्मी !!! हमारे लिए सबको परेशान करने की आवश्यकता नहीं..!!

इतना कहकर विग्रह ने अपनी जुनूनी और तेज़ नजरों से शर्वाणी की तरफ देखा तो उनकी तरफ पीठ करके खड़ी थी। उसने अपने लंबे बालों का जुड़ा बनाया हुआ था जिनमें से कुछ बाल निकल कर उसके चेहरे पर आ रहे थे। उसने साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा हुआ था जिससे उसकी लचीली भरी भरी कमर विग्रह को दिख रही थी। उफ्फ इस पचरंगी साड़ी में वो प्रलय लाने की कोशिश में थी। विग्रह ने बड़ी मुश्किल से स्वयं पर नियंत्रण रखा और उससे अपनी नज़रे हटा ली वहीं अपने पति की आवाज सुनते ही शर्वाणी झेप गई उसने जल्दी से कमरे से पल्लू को निकाला और सिर पर पल्लू लगा लिया। राज सर उसे जी भर के देखना चाहते हैं मगर अभी सासू मां मौजूद थी। दीपिका जी आदर से बोली-

कोई परेशान नहीं हो रहा जमाई सा। आप आराम से पापा जी (शर्वाणी के दादा जी) के साथ सो जाइए.!!

विग्रह बैचेन होने लगा क्योंकि उसे शर्वाणी के साथ ऊपर छत पर जाना था लेकिन अब मर्यादा के चक्कर में कहे कैसे इसलिए दिल पर पत्थर रखकर हा कहकर वहां से चला गया। उसके जाते ही शर्वाणी ने चैन की सांस ली और बोली-

भोजना लगवा दे??

दीपिका जी हा वैसे भी अब सारी रस्में तो हो ही चुकी हैं बाकी कल सुबह जल्दी शुरू होंगी..!!

रात्रि का भोजन हो जाने के बाद विग्रह शौर्य से बोला-

साले साहब !!! बाथरूम कहां है??

शौर्य - यहां सार्वजनिक बाथरूम है तो आपको दिक्कत हो सकती है जीजा सा..!!

विग्रह- इसमें कोई दिक्कत नहीं..!!

शौर्य विग्रह को अपने साथ ले गया और बाथरूम के दरवाजे पर आकर खड़ा हुआ तभी वो दरवाज़ा खुला और उसमें से निकली राज सर के जीव की जड़ी। जिसे अचानक अपने सामने देखते ही राज सर का दिल धक-धक करने लगा। वे मंत्र मुग्ध होकर उसके रूप को देखने लगे वहीं अपने पति को अचानक अपने सामने देखकर शर्वाणी घबरा और शर्मा गई और तुरंत वहां से चली गई। उसके जाते ही विग्रह अपने हसीन ख्यालों से बाहर निकल आया और बोला-

यहीं है क्या??

शौर्य - जी..!!

विग्रह हैरान हो कर मगर स्त्री और पुरुषों का बाथरूम तो अलग होना चाहिए.. हमारे कहने का तात्पर्य है कि महिलाओं में हाइजीन का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए अगर सभी महिलाएं इसी वॉशरूम का उपयोग करती है तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है..!!

शौर्य- अब सही कह रहे है जीजा सा इन लोगों के पास बहुत पैसा है लेकिन इतने कंजूस है कि खर्च नहीं करते चलो खर्च नहीं करते लेकिन आवश्यक वस्तुओं में तो खर्च करना चाहिए ना हम सब तो कह कर परेशान हो गए कि हर कमरे में अपना अलग-अलग वॉशरूम बना लो लेकिन पता नहीं क्यों इन्हें इतने पैसे बचाने हैं..!!

विग्रह ने गहरी सांस ली और अपने मन में बोला-

और किसी का नहीं लेकिन हमें हमारी जीव की जड़ी की चिंता होती है वह बड़ी कोमल सी रानी है उसके स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं कर सकते हम.. जल्दी से विवाह हो जाए तो उन्हें ले जाते हैं यहां से हम नहीं चाहते कि वह सार्वजनिक वॉशरूम का इस्तेमाल करें बिल्कुल भी नहीं..!!

विग्रह वॉशरूम में चला गया।

रात के नौ बजे.

विग्रह से काफ़ी देर बातचीत करने के बाद श्रवण जी को तो नींद आ गई। मगर विग्रह वहीं कमरे में बेचैनी और तड़प से इधर उधर टहल रहा था बार बार कमरे के दरवाजे से बाहर झांकता कि कहीं से तो उस कन्या की झलक दिखाई दे मगर पता नहीं कहा गायब हुई है वो। काफी देर इंतेज़ार करने के बाद विग्रह दादा जी के बगल बेड पर उनसे उचित दूरी बनाकर लेट गया। मोबाइल स्क्रीन पर शर्वाणी की प्यारी सी तस्वीर देखकर बेहद आकर्षक तरीके से मुस्कुरा दिया और उसे निहारता रहा।

आधे घंटे बाद.......

हिम्मत करते हुए शर्वाणी पानी का जग लेकर विग्रह के कमरे में आई बिना आवाज किए चुप चाप आगे बढ़ने लगी। बेड के पास आकर देखा तो होठों पर बेहद खूबसूरत मुस्कान आ गई। उसके पतिदेव कितनी चैन से आंखे बंद करके लेटे हुए हैं। सोते हुए विग्रह कितना प्यारा लगता है। शर्वाणी असीम प्रेम लिए उसे देखे जा रही थी और पानी का जग साइड टेबल पर रख कर अपना हाथ विग्रह के चेहरे की तरफ बढ़ाया तभी विग्रह ने उसका हाथ पकड़ लिया और तुरंत अपनी जुनूनी निगाहों को खोला। शर्वाणी तो दंग रह गई और घर थर कांपने लगी। विग्रह बैठ गया और अपनी कातिल निगाहों से उसकी घबराहट को देखकर बोला-

कब तक दूर जाओगी हमसे अब जब आपके पास आने का, आपको पूरी तरह से छूने का, आपको अपना नाम करने का पूर्ण अधिकार और कारण मिल गया है हमें..!!

शर्वाणी का पूरा शरीर कांपने लगा, गाल लाल होने लगे और पतिदेव की तपिश भरी निगाहों से वो सिहर रही थीं। लेकिन वो उससे नज़रे नहीं मिला पा रही थी और धीमी आवाज में बोली-

छोड़िए न प्लीज दादा जी देख लेंगे..!!

विग्रह उसके प्यार में पागल हो कर जुनून से बोला-

नहीं छोड़ेंगे..!!

शर्वाणी घबराती हुई अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली-

प्लीज़ समझने की कोशिश कीजिए यहां पर तमाशा बन जाएगा किसी ने हम दोनों को इस तरह देख लिया तो.!!

विग्रह बेड से उठने लगा और शर्वाणी के बेहद करीब आने लगा। शर्वाणी की सांसे तेज़ होने लगी सीना ऊपर नीचे होने लगा और वो पीछे हटने लगी तभी विग्रह ने उसका हाथ छोड़ दिया और शिद्दत से बोला-

कल बताएंगे हम आपको..!!

विग्रह के हाथ छोड़ते ही शर्वाणी तुरंत वहां से चली गई। उसने आव देखा न ताव सीधा छत पर चली गई और अपना गद्दे पर बैठकर तेज़ तेज़ सांस लेने लगी। उसका पूरा शरीर गर्म हो गया था सांसे बेकाबू हुए जा रही थी तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वो घबरा गई तभी विक्रम जी प्यार से बोले -

क्या हुआ बेटा हम है आपका पापा..!!

अपने पापा को देखकर शर्वाणी ने गहरी सांस ली और बोली-

कुछ नहीं हम बस सीढ़ियों पर तेजी से चढ़े तो सांस फूल रही है आप आइए बैठिए..!!

विक्रम जी खुशी से उसके पास बैठ गए और उसके सिर पर हाथ रखकर बोले-

कितनी मेहनत करती हैं हमारी बच्ची! पूरे दिन बस भागा दौड़ करती है इतनी सी उम्र में सब कुछ संभाल लेती हैं...!!

शर्वाणी अपनी खूबसूरत मुस्कान लिए बोली-

आपकी बेटी हूं न इसलिए..!!

विक्रम जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा वहीं छत के दरवाजे पर खड़े विग्रह राज ने जब बाप बेटी को एक साथ खुश देखा तो उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो अपनी आकर्षक आवाज में बोला -

अगर पिता पुत्री को कोई आपत्ति ना हो तो हम भी आपका वार्तालाप में सम्मिलित हो जाएं..!!

विग्रह की आवाज़ सुनते ही शर्वाणी ने अपनी नज़रे झुका ली वहीं विक्रम जी को तो गुस्सा ही आ गया और वे अपनी जगह से खड़े होकर बोले-

आप क्यों हर बार वहां पहुंच जाते है जहां हम और हमारी बेटी होते है..!!

विक्रम जी का लहज़ा बिगड़ने लगा था जिसका आभास होते ही शर्वाणी तुरंत अपनी जगह से उठी और चिंतित होकर अपने पिता को देखने लगी वहीं विक्रम जी का लहज़ा देखकर और उनकी बात सुनकर विग्रह अपनी दमदार और रौबदार आवाज़ में मगर आदर से बोला-

क्योंकि आपकी बेटी अब हमारी पत्नी है इसलिए जहां ये होगी हम अपने आप पहुंच जाएंगे..!!

कैसा लगा आज का पार्ट कमेंट करके बताइए दोस्तों?

अब होगा हंगामा और थोड़ा सबक मिलना भी जरूरी है विक्रम जी को कि राज सर से किस प्रकार बात की जाती हैं।

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Khushi

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