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Episode 189

विक्रम जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा वहीं छत के दरवाज़े पर खड़े विग्रह राज ने जब बाप बेटी को एक साथ खुश देखा तो उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो अपनी आकर्षक आवाज में बोला -

अगर पिता पुत्री को कोई आपत्ति ना हो तो हम भी आपकी वार्तालाप में सम्मिलित हो जाएं..!!

विग्रह की आवाज़ सुनते ही शर्वाणी ने अपनी नज़रे झुका ली वहीं विक्रम जी को तो गुस्सा ही आ गया और वे अपनी जगह से खड़े होकर बोले -

आप क्यों हर बार वहां पहुंच जाते है जहां हम और हमारी बेटी होती है..!!

विक्रम जी का लहज़ा बिगड़ने लगा था जिसका आभास होते ही शर्वाणी तुरंत अपनी जगह से उठी और चिंतित होकर अपने पिता को देखने लगी वहीं विक्रम जी का लहज़ा देखकर और उनकी बात सुनकर विग्रह अपनी दमदार और रौबदार आवाज़ में मगर आदर से बोला-

क्योंकि आपकी बेटी अब हमारी पत्नी है इसलिए जहां ये होगी हम अपने आप पहुंच जाएंगे..!!

विग्रह ने कहा तो आदर से था लेकिन पूरे कटाक्ष में लिप्त होकर। जिसे समझ कर विक्रम जी

बोले -

जानते जानते है कि ये आपकी पत्नी है लेकिन उससे पहले हमारी बेटी भी हैं तो जरूरी है क्या कि आप चौबीस घंटे इसके आसपास ही मंडराएं अरे एक लड़की को कभी कभी अपने माता पिता से बात करने की उनके साथ समय बिताने की भी इच्छा होती हैं लेकिन आप तो बस अपनी धौंस जमाना जानते हैं और ये ठहरी डरपोक आपसे कुछ कहती नहीं होगी इसलिए आपकी मनमानी चलती जा रही है..!!

विक्रम जी की ऐसी बातें सुनकर शर्वाणी को बहुत बुरा लगा और उतना ही ज्यादा डर भी लगने लगा क्योंकि कोई भरोसा नहीं कि कब राज सर आपके आपे से बाहर हो जाएं। वहीं विग्रह के चेहरे के हावभाव अब सीरियस हो गए और वो अपनी भारी मर्दाना आवाज़ में थोड़ा जोर से बोला

पुरोहित जी! जरा मर्यादा को कायम रखिए क्योंकि हम भी रख रहे हैं आप उम्र में और अनुभव में हमसे बड़े हैं बस इसीलिए आपका आदर करते हैं कुछ बोल नहीं रहे हैं बहुत समय से सब कुछ सुन और देख रहे हैं लेकिन इसका यह तात्पर्य नहीं कि आप कुछ भी हमसे कहेंगे और हम चुपचाप सुनेंगे आपको इतना बताना चाहेंगे कि हमारे इस 28 साल के जीवन में आप पहले ऐसे इंसान है जिनका इतना सुना है हमने वरना हर किसी को सिर्फ सुनाया है हमने वजह सिर्फ आपके बगल में खड़ी आपकी बेटी है इसका चेहरा नजर आता है हमें तब हम आपको कुछ नहीं कहते हैं सोच लीजिए कितना सम्मान करते हैं हम इसका वरना इस दुनिया में ऐसा कोई पैदा ही नहीं हुआ जो विग्रह राज सूर्यवंशी का अपमान कर सके..!!

विग्रह की बात सुनकर शर्वाणी भावुक हो गई मगर माहौल अब थोड़ा गर्म होने लगा था और उसमें घी डालते हुए विक्रम जी बोले-

घमंड सिर्फ और सिर्फ़ घमंड करना आता है आपको.. अपनी आधुनिक सोच ऊंचा खानदान और वह पैसे इन सब का घमंड ही तो है आपको अपने घमंड में आपने हमारी बेटी से विवाह कर लिया हमें नीचा दिखा दिया लेकिन अब आप हमारी बेटी को हमसे दूर नहीं कर सकते..!!

विक्रम जी की बात सुनते ही विग्रह ने अपनी मुट्ठी को कसकर बंद कर लिया और अपने दांत पीसते हुए अपनी दमदार आवाज़ में बोला-

लगता है आपको मानसिक उपचार की सख्त जरूरत है पुरोहित जी! आप ना जाने क्या-क्या बोल रहे हैं जो की अर्थ का भी अनर्थ कर रहा है.. ना तो हमें किसी बात का घमंड है और ना कभी होगा बार-बार आप ही हमें याद दिलाते हैं कि हमारे पास अरबों पैसे हैं हमारी सोच आधुनिक है हम ऊंचे खानदान से हैं जबकि हम तो 24 घंटे ऐसा कुछ याद नहीं रखते और रही बात एक बेटी को अपने पिता से दूर करने की तो जी माफ कीजिएगा ऐसे संस्कार हमें हमारे माता-पिता ने नहीं दिए.. जो हमें आपकी बेटी को आपसे दूर करना होता तो मजाल है हम एक दिन के लिए भी उसे अपने मायके आने देते हैं फिर किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि हमें रोक पाए बोलिए है किसी में इतनी हिम्मत..??

विग्रह की बातों ने विक्रम जी को निशब्द कर दिया मगर वे कहां चुप रहने वाले थे। उन्होंने भी बराबरी में कहा -

देख लीजिए या आप हमें धमकी तो दे रहे हैं अप्रत्यक्ष रूप से आप हमें धमका रहे हैं कि किसी में इतनी ताकत नहीं है कि आपको कोई रोक सके..!!

विक्रम जी की बात सुनते ही विग्रह के चेहरे पर एक कटाक्ष भरी मगर बेहद आकर्षक मुस्कान आ गई और वह बोला-

इसे धमकी नहीं कहते इसे सत्य कहते हैं और हम सदैव सत्य ही बोलते हैं सच कह रहे हैं किसी में इतनी ताकत नहीं है कि वो हमें रोक सके.. शायद सच कड़वा है तभी तो आपको चुभा है.. अंत में अब से इतना ही कहना चाहेंगे थोड़ा शांति रखिए ठंडा पानी पीजिए सकारात्मक विचार रखिए जितने नकारात्मक आप है उतना सामने वाला भी हो ऐसा आवश्यक नहीं है आप दोनों बाप बेटी को साथ में देखकर हम बहुत खुश हुए थे क्योंकि हम आपकी तरह नहीं है कि छोटे-छोटे बातों से हमें जलन होगी.. हमारे लिए सब कुछ क्लियर है कि यह कन्या हमारी पत्नी है तो पत्नी ही रहेगी आपके लिए भी क्लियर होना चाहिए कि यह कन्या आपकी बेटी है तो बेटी ही रहेगी पिता पुत्री का और पति-पत्नी का रिश्ता कभी बदलता तो है नहीं तो फिर ये जलन कैसी ये बेमतलब का गुस्सा कैसा वो भी उस इंसान पर जो आपको पिता समान मानने के लिए तैयार है..!!

विग्रह की इस बात से विक्रम जी को बहुत गुस्सा आया और वे थोड़ी ऊंची आवाज में बोले-

इतना घमंड है आप सूर्यवंशियों को इतना घमंड.. ना उम्र का लिहाज है ना रिश्तो का बस अपने खानदान का रौब सबको दिखाना आता है आप लोगों को.. आप और आपका पूरा परिवार बस दिखावे की जिंदगी जीते है और दादागिरी करके अपना काम निकलवा लेते है क्योंकि पूरे राज्य में धाक जो है आप लोगों की.. बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है हमें यह देखकर कि आप हमारे जमाई है..!!

विक्रम जी का इतना ही कहना था कि विग्रहराज सूर्यवंशी अपनी दमदार और गुस्सैल आवाज़ में ज़ोर से बोला -

बस!!!!!!!!!!!! एक दम बस!!!!!!!! Enough is enough बहुत दिनों से देख रहे हैं हम आपके नाटक और चुपचाप सहन कर रहे हैं और आप हमारी सहनशीलता को मजाक में ले रहे हैं हमें पागल समझ रखा है क्या अब तक आप हमारे बारे में कुछ भी बोल रहे थे हम चुप थे लेकिन हमारे खानदान का नाम तक आप अपनी जुबान पर मत लेना आप हमें इज्जत नहीं दे सकते चलेगा लेकिन हमारे परिवार के बारे में कुछ भी मत कहिएगा आप जैसे इंसान को तो ऐसा जमाई मिलना चाहिए जो दिन में तारे दिखाएं आपको तब पता चलेगा कि जमाई होता क्या है भाग्य अच्छा है आपका जो हम मिल गए जमाई के रूप में तभी इतनी अकड़ दिखा रहे हैं आप हमें और अपनी बेटी को भी.. किस प्रकार के इंसान हैं आप और बोलने लायक तो आप किसी 'भी तरह से नहीं है क्योंकि जब आपकी बेटी विवाह करके पहली बार मायके आई थी तब सामने भी नहीं आए आप उसके और अब बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं हमें सुना रहे हैं हमारे परिवार को सुना रहे हैं जबकि सुनने तो क्या बोलने के लायक भी नहीं है आप और अब यहां पर खड़े रहना हमारी और हमारे परिवार की बेज्जती है.. नहीं निभानी हमें आपसे कोई रिश्तेदारी रहिए आप अपने घमंड में अपनी एक झूठी दुनिया में जहां आपको खुशी मिलती है लेकर जा रहे हैं हम अपनी पत्नी को यहां से और हिम्मत है तो रोक कर दिखाइए हम दोनों को..!!

विग्रह के गुस्से को देखकर शर्वाणी के हाथ पैर फूलने लगे। वो थर थर कांप रही थी अपने पति के गुस्सैल और सख़्त चेहरे को देखकर। सच में आज उसके पापा ने हद ही पार कर दी थी तभी विग्रह को अपना नियंत्रण खोना पड़ा। विग्रह की ऊंची और दमदार आवाज़ सुनकर विक्रम जी तो दंग रह गए थे अब उनके पास बोलने के लिए कुछ नहीं था क्यूंकि विग्रह की गुस्सैल नजरों से वे घबरा रहे थे हालांकि उन्हें भी बहुत अधिक क्रोध आ रहा था लेकिन अब वे विग्रह के सामने कुछ नहीं बोल पा रहे थे। विग्रह ने आज पहली बार किसी बड़े से इतनी ऊंची आवाज में बात की थी जिसका पछतावा शायद उसे जीवन भर रहेगी मगर वो भी क्या करे कितना सहन करे और कब तक करे। विग्रह तेज़ तेज़ सांस लेने लगा और विक्रम जी को गुस्से से देखते हुए बोला -

शर्वाणी !!!! तुरंत हमारे साथ चलो अब हम यहां एक पल नहीं रुक सकते..!!

विग्रह की बात सुनकर शर्वाणी दंग रह गई और विक्रम जी का गुस्सा बढ़ने लगा कि विग्रह की हिम्मत कैसे हुई उनकी बेटी को उनसे दूर करने की। विक्रम जी अपनी मुट्ठी भींच कर बोले-

ये हमारी बेटी है और ये यहां से कहीं नहीं जाएगी.. आप इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते..!!

विक्रम जी के इतना कहते ही विग्रह गुस्से में आकर कुछ कहता इससे पहले ही शर्वाणी दुखी होकर हाथ जोड़कर बोली-

प्लीज पापा प्लीज़ अब तो शांत हो जाइए अब तो रुक जाइए पहले ही सब कुछ खराब हो चुका है अब तो समझने की कोशिश कीजिए अब तो अपने गुस्से को एक तरफ रखिए और अपने सामने खड़े इंसान की अच्छाई को देखने की कोशिश कीजिए.. हम परेशान हो गए है आपके ऐसे व्यवहार से विश्वास नहीं होता कि ये हमारे पापा है जो सबसे कितना प्यार करते हैं सबकी कितनी इज्जत करते है लेकिन हमारे ही पति का अपमान करते हैं लेकिन माफ कीजिएगा पापा! ये हमसे सहन नहीं होगा.. इनका अपमान हमारा अपमान है और जहां अपमान होता है वहां रुकना शोभा नहीं देता..!!

शर्वाणी की बात सुनकर विक्रम जी के सीने में दर्द सा उठा और वे अपनी बेटी को घूरने लगे वहीं विग्रह तो अब अपने नियंत्रण में नहीं था इसलिए बिना कुछ कहे वहां से चला गया। उसे जाता देख शर्वाणी की आंखे भर आई और वो उसके पीछे पीछे जाने लगी तभी विक्रम जी ने उसका हाथ पकड़ लिया और भावुक होकर बोले-

अपने कुछ दिनों के प्रेम के लिए अपने पिता के वर्षों के प्रेम को ठुकरा रही है आप??

शर्वाणी ने अपना हाथ छुड़ा दिया और आंखों से आंसू बहाते हुए बोली-

हमारे लिए पिता और पति दोनों अलग अलग व्यक्ति है जिनके अलग अलग स्थान हैं हमारे जीवन में तो कृपया करके आप किसी की किसी से भी तुलना मत कीजिए हम पैर पड़ते है आपके..!!

शर्वाणी जल्दी से वहां से चली गई और नीचे आंगन में आई तो क्या देखती है कि विग्रह अपना और उसका दोनों का बैग लेकर खड़ा था और उसकी आंखों में आग साफ़ दिख रही थी। डरी सहमी शर्वाणी उसके सामने आकर खड़ी हो गई और कुछ कहती इससे पहले मामा जी, दादा जी, दीपिका जी, शौर्य और बाकी सभी वहां आ गए और इतनी रात को विग्रह को समान के साथ देखकर काफी हैरान हुए।

श्रवण जी जमाई सा!! ये बैग्स ??

विग्रह ने श्रवण जी के आगे हाथ जोड़ लिए और अपनी भूरी निगाहों से एक बार सबको देखते हुए आदर से बोला -

सीधी सी बात यह जहां मान सम्मान और मर्यादा होती हैं विग्रहराज के कदम वहीं टिकते है चाहे फिर वो जगह एक झोपड़ा भी क्यों ना हो..!!

शर्वाणी अपनी मां के पास आकर सिर झुका कर खड़ी हो गई और विग्रह आगे बोला-

जब से विवाह हुआ है पुरोहित जी का रवैया हमारे प्रति अनुचित रहा है हमने सहन किया कदम कदम पर उन्हें माफ़ किया वजह सिर्फ़ शर्वाणी है और आप सबका हमारे प्रति प्रेम और सम्मान किंतु आज हमारी सहनशक्ति ने उत्तर दे दिया और अब हम एक पल भी यहां नहीं रह सकते और न ही हमारी पत्नी.. क्या हुआ कैसे हुआ इसकी विस्तृत जानकारी आपको पुरोहित जी अच्छे से देंगे हमें अब आज्ञा दीजिए और एक बार फिर से आप सबसे खास करके मामा जी से माफी चाहते है किंतु हमारी परिस्थिति को समझिए..!!

विग्रह की बात सुनकर सभी के होश उड़ गए। सब लोग इतना तो समझ गए थे कि इस बार फिर से विक्रम जी ने कुछ किया होगा लेकिन आज ऐसा क्या किया कि विग्रह राज जैसा शांत और सौम्य व्यक्ति भी अपना आपा खो बैठा।

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