
(कान्वेंट स्कूल, राजस्थान)
राजस्थान, कान्वेंट स्कूल- जहाँ हर ईंट पर राणा परिवार की मौहर थी, और हर कोने में उनकी शान बसी थी।
सुबह के ठीक दस बज रहे थे। स्कूल का विशाल ग्राउंड छात्रों से खचाखच भरा था। क्लास बंक कर आए स्टूडेंट्स का उत्साह अपने चरम पर था, क्योंकि मैदान में वह शख्स था, जिसका नाम ही जुनून की परिभाषा था-अधिक राणा !
रेड जर्सी में लिपटा 15 साल का वह लड़का मानो आग की लपटों में घिरा एक योद्धा था। हर कदम में आत्मविश्वास, हर मूव में परफेक्शन। बास्केटबॉल को अपोजिट टीम से बचाते हुए उसकी आँखों में वैसा ही दृढ़ निश्चय था, जैसा अर्जुन की दृष्टि चिड़िया की आँख पर होता था। अधिक राणा-जिसे जीतना आता था, हारना नहीं।
उसकी पर्सनालिटी में वही ठहराव, वही शान थी, जो उसके पिता अध्याय राणा की पहचान थी। लंबा, गठीला शरीर, गेहुँआ रंग, गहरी भूरी आँखें, जिनमें एक अजीब-सा गुरूर बसा था। वह देखने में एक स्कूल का स्टूडेंट जरूर था, लेकिन उसके अंदर की आग, उसकी गंभीरता और ठोस इरादे उसे दूसरों से अलग बनाते थे।
उसके बाल हल्के बिखरे हुए थे, माथे पर पसीने की हल्की बूंदें चमक रही थीं, लेकिन चेहरे की कठोरता जरा भी कम नहीं हुई थी। ठहराव ऐसा कि लोग ठिठककर देख लें, और गुस्सा ऐसा कि सामने वाला कांप उठे।
बास्केटबॉल उसके हाथ में थी, और जैसे ही उसने छलांग लगाकर बॉल को नेट में डालने के लिए उछाला, भीड़ एक स्वर में गूंज उठी- "अधिक राणा! अधिक राणा!"
और अगले ही पल, बॉल नेट के पार थी- सीधा लक्ष्यभेदी तीर की तरह !
पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अधिक ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस अपनी जर्सी से माथे का पसीना पोंछा और गहरे आत्मविश्वास से अपनी जगह खड़ा हो गया। क्योंकि अधिक राणा जीत का जश्न नहीं मनाता था- वह जीत के लिए बना था !
बास्केटबॉल नेट में गिरते ही पूरा ग्राउंड तालियों और शोर से गूंज उठा। स्कूल की लड़कियों और लड़के, सब जोश में भरकर अधिक राणा का नाम लेकर चीयर करने लगे। अधिक ने अपनी रेड जर्सी उतारकर एक तरफ फेंक दी। इस वक्त वह शर्टलेस था-पसीने में भीगा हुआ, मगर चेहरे पर वही ठहराव, वही बेपरवाही, जैसे जीत उसके लिए कोई नई बात न हो।
भीड़ में से कुछ लड़कियाँ उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थीं, कुछ कुछ उसे चिल्ला-चिल्लाकर बधाइयों दे रही थीं, लेकिन अधिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसके लिए यह सब बस आम बात थी।
इसी बीच भीड़ को चीरते हुए एक लड़का उसकी तरफ आया-धीरज राणा। अधिक का हमउम्र भाई, उसकी धरा मासी और देव चाचू का बेटा। धीरज हमेशा की तरह मुस्कुरा रहा था। उसके हाथ में पानी की बोतल थी, जिसे उसने अधिक की तरफ बढ़ाते हुए कहा - "मुबारक हो भाई सा। आप फिर जीत गए।"
अधिक ने बिना कुछ कहे बोतल ली, दो घूंट पानी पिया, फिर चेहरे से पसीना पोंछते हुए अपनी गहरी आवाज़ में बोला- "अधिक राणा हूँ मैं... मैंने कभी हारना सीखा ही नहीं!"
15 साल का यह लड़का, मगर चेहरे पर ऐसा रौब था, जैसे पूरी दुनिया जीतने की ताकत रखता हो। उसकी आँखों में जोश था, और शब्दों में ऐसा आत्मविश्वास, मानो जो कह दिया, वो पत्थर की लकीर हो।
धीरज हल्के से मुस्कुराया। उन दोनों का रिश्ता राम और लक्ष्मण जैसा था। जहाँ अधिक के लिए जीत सब कुछ थी, वहीं धीरज के लिए उसके भाई सा।
अधिक को तेज गर्मी लग रही थी। उसने पानी की बोतल उठाई और ठंडा पानी सीधा अपने सिर पर उड़ेल दिया। पानी उसके गीले बालों से फिसलता हुआ चेहरे और सीने पर बहने लगा। सूरज की रोशनी में उसके चौड़े सीने पर चमकते पानी की बूंदें किसी मोती से लग रही थीं।
उसे इस तरह देख, क्लास की लड़कियों तो छोड़ो, सीनियर और जूनियर तक पागल हुए जा रहे थे। लड़कियों की चीखें और तेज़ हो गई थीं। कोई उसका नाम पुकार रही थी, तो कोई बस उसे देख मंत्रमुग्ध खड़ी थी।
आखिर वो अध्याय राणा का बेटा था..... तो लड़कियां उसके पीछे कैसे नहीं पड़ती।
जहाँ पूरा स्कूल अधिक की जीत पर हुटिंग कर रहा था, वहीं उसकी अपोज़िट टीम का एक लड़का गुस्से से तिलमिला रहा था। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, मुट्ठियाँ गुस्से से भिच गई थीं। ये पहली बार नहीं था जब उसने अधिक से हार का स्वाद चखा हो, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उसकी हार उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
वो लड़का अधिक के पास आया और व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ बोला, "आखिर इस बार भी तुम जीत गए। लेकिन ज्यादा वक्त तक तुम यह जीत का स्वाद नहीं चख पाओगे!"
अधिक के होंठों पर एक गहरी, रहस्यमयी मुस्कान आ गई। उसने हल्की उदासी का नाटक करते हुए लड़के के कंधे पर हाथ रखा और बड़े ही मीठे लहजे में बोला, "समझ सकता हूँ... बार-बार हारने वाले लोग अक्सर झूठी उम्मीदें पाल लेते हैं। मगर कोई नहीं, तुम्हारी ये उम्मीदें भी जल्द तोड़ दूँगा... पर इस बार ज़रा नर्मी से, ताकि दर्द ज़्यादा न हो।"
अधिक की बातों में तंज था, लेकिन उसके लहजे में ऐसी नरमी थी कि सामने वाला चाहकर भी उस पर गुस्सा नहीं कर सकता था। वहीं, उस लड़के का चेहरा देखने लायक था-गुस्सा, जलन और बेबसी तीनों साफ झलक रहे थे।
राणा हवेली... जहाँ हमेशा की तरह आज भी रौनक थी, लेकिन आज की रौनक कुछ खास थी। पूरा महल दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था, और इस सारी तैयारी की निगरानी खुद हुकुम रानी सा कर रही थीं। अद्विका राणा... जिसकी हुकूमत अब सिर्फ़ अध्याय राणा के दिल तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे जयपुर पर थी। उम्र के साथ उसकी खूबसूरती में और निखार आ चुका था, लेकिन एक चीज़ जो बदल चुकी थी वो थी उसकी पहचान। वो अब अध्याय राणा की रस्मलाई नहीं, बल्कि जयपुर की हुकुम रानी सा थी। और उसकी इज्जत भी अब किसी महारानी से कम नहीं थी।
लाल रंग की खूबसूरत सिल्क साड़ी में लिपटी अद्विका अपनी वही पुरानी नज़ाकत के साथ, मगर रानी जैसी शान के साथ, हवेली की हर एक तैयारी पर खुद नज़र रख रही थी। उसकी आँखें जहाँ जातीं, लोग सिर झुकाकर खड़े हो जाते। महल के नौकर-चाकर भी उसकी एक झलक पाते ही सतर्क हो जाते। एक इशारा ही काफ़ी था, और लोग समझ जाते कि क्या करना है।
आज हवेली में कोई भी काम बिना उसकी मर्जी के नहीं हो सकता था, क्योंकि वो अब अध्याय राणा की प्यारी बीवी ही नहीं, बल्कि इस राणा हवेली की असली रानी थी!
अद्धिका अभी तैयारियों में व्यस्त ही थी कि तभी धरा उसके पास आई और हल्की शिकायती लहजे में बोली, "सुबह से भाग-दौड़ में लगी हो, लेकिन अब तक नहीं बताया कि ये सब किस खुशी में हो रहा है! आख़िर इतनी खास तैयारी किसके लिए?"
धरा की बात सुनकर अद्विका के चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान आ गई। उसने ठहरकर अपनी बड़ी बहन की ओर देखा और पूरे रौब से बोली, "हमारी बहू पहली बार जयपुर आ रही है जीजी! और ये सारी तैयारियाँ सिर्फ़ उसके स्वागत के लिए हैं। आख़िर पूरे जयपुर को ये खबर होनी चाहिए कि अद्विका अध्याय राणा की बहू आ रही है!"
"अद्विका अध्याय राणा की बहू... "ये शब्द धरा के कानों में पड़े, और उसकी मुस्कान हल्की पड़ गई। उसकी आँखों में एक अजीब-सी नाखुशी थी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वो बस अद्धिका को देखती रही, जो पूरी शान के साथ फिर से तैयारियों में जुट गई थी। उसके हर कदम, हर शब्द में राणा हवेली की रानी सा की ठसक थी!
अधिक इस वक्त चेंजिंग रूम में था। उसने जल्दी से अपने कपड़े बदले और स्कूल यूनिफॉर्म पहन लिया। तभी अचानक, उसके कानों में एक मीठी, कोमल आवाज़ गूंजी "अधिक।"
यह आवाज़ सुनते ही हमेशा सख्त मिज़ाज रखने वाले अधिक राणा के होंठों पर अनजाने में एक हल्की मुस्कान आ गई। उसने अपनी नज़रे उठाईं, और सामने खड़ी उस शख्सियत को देखा, जिसने उसकी दुनिया में हमेशा एक खास जगह बनाई थी।
एक 13-14 साल की लड़की, स्कूल यूनिफॉर्म में खड़ी थी। उसकी मासूमियत और खूबसूरती एक अलग ही चमक बिखेर रही थी। बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें, गुलाबी गाल, और होठों पर हल्की-सी शरारती मुस्कान... उसे देख अधिक के होंठों से बहुत धीरे से एक नाम फिसल पड़ा "पारुल!"
अपना नाम अधिक के मुँह से सुनते ही पारुल के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उसकी मुस्कान और गहरी हो गई, मानो सिर्फ इसी लम्हे के इंतजार में थी।
पारुल तेज़ी से आकर अधिक के पास बैठ गई, उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी। मुस्कुराते हुए उसने हल्के से कहा- "कैसे हो तुम?"
अधिक ने अपने होंठों पर हल्की मुस्कान सजाई और अपनी गहरी आवाज़ में जवाब दिया- "मैं तो ठीक हूँ! तुम बताओ, कब लौटी ट्रिप से? और पूर्वी आंटी-अंकल कैसे हैं?"
बस, यह सुनते ही पारुल की मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी। उसके चेहरे से वो चमक जैसे कहीं खो गई थी। उसने एक लंबी सांस खींची, और बड़ी मुश्किल से मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोली- "हम्म... सब ठीक है।"
लेकिन अधिक राणा को कोई इतनी आसानी से बहला नहीं सकता था। वह गहरी नज़रों से उसे देखता हुआ, अपनी भारी आवाज़ में बोला- "अगर सब ठीक है, तो तुम्हारी ये मुस्कान इतनी फीकी क्यों पड़ गई?"
पारुल एक पल के लिए चुप रही। उसकी उंगलियाँ उसके दुपट्टे के के कोने से खेलने लगीं, जैसे कुछ सोच रही हो। फिर उसने जबरदस्ती एक हल्की मुस्कान ओढ़ी और बोली-
"मेरे मम्मी-पापा अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास मेरे लिए बिल्कुल भी वक़्त नहीं है... हमेशा बस मीटिंग्स, ट्रिप्स और डील्स... मैं कब घर आती हूँ, कब जाती हैं, इससे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता।"
उसकी आवाज़ में छिपा दर्द अब साफ झलक रहा था। वह जबरन मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी आँखों की उदासी किसी से छिपी नहीं थी। उसने हल्की आवाज़ में आगे कहा
"इसलिए वापस इंडिया आ गई... शायद यहाँ आकर मुझे वो अपनापन महसूस हो, जो वहाँ कभी नहीं मिला।"
अधिक उसकी आँखों में छुपे खालीपन को साफ देख सकता था। वह लड़की जो हमेशा हँसती थी, आज उसकी हँसी में भी एक में भी एक उदासी छुपी थी।
अधिक ज्यादा देर तक पारुल की उदासी नहीं देख पाया। उसकी मायूसी उसकी आँखों में साफ झलक रही थी, और ये बात अधिक को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। उसने धीरे से अपना हाथ पारुल के हाथ पर रखा और अपनी गहरी, ठहरी हुई आवाज़ में कहा-
"तू फ़िक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा!"
उसकी आवाज़ में वही पुराना अपनापन था, वही भरोसा जो हमेशा पारुल को हिम्मत देता था। यह सुनते ही पारुल ने उसकी आँखों में झाँका, जहाँ हमेशा की तरह उसके लिए एक अजीब-सा सुकून था। हल्की मुस्कान के साथ उसने कहा-
"तुम हमेशा मेरे बेस्टफ्रेंड बनकर मेरे साथ रहोगे न अधिक?"
"हमेशा," अधिक ने बिना एक पल भी सोचे अपनी पलकों को झपकाते हुए सिर हिला दिया।
बस, इतना सुनते ही पारुल भावुक हो गई। उसका दिल जैसे किसी बोझ से दबा था, और अब उसे एक सहारा मिल गया था। उसने बिना कुछ सोचे सीधे अधिक के गले से लिपट गई।
इस वक़्त उसे बस किसी अपने की ज़रूरत थी, जो उसे समझ सके, जो बिना कुछ कहे भी उसके दर्द को महसूस कर सके। और वो अपनापन, वो सुकून उसे सिर्फ अधिक राणा में मिला।
अपने माँ सा के बाद, अगर अधिक ने कभी किसी लड़की को अपने इतने करीब आने की इजाजत दी थी, तो वो सिर्फ पारुल थी। वह उसकी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा थी, जो बिना कुछ कहे भी उसकी हर भावना को समझ जाती थी।
कनाडा से आई फ्लाइट जैसे ही जयपुर के एयरपोर्ट पर लैंड करती है, वहां हलचल तेज हो जाती है। उसी भीड़ के बीच, एक कपल अपने साथ एक नन्ही-सी गुड़िया को लिए उतरता है। वह छोटी-सी बच्ची किसी परी से कम नहीं लग रही थी-गुलाबी, नर्म गाल, बड़ी-बड़ी चमकती हुई आंखें, हल्के गुलाबी होंठ, और माथे पर पसीने की हल्की बूंदें, जो उसकी मासूमियत को और भी निखार रही थीं।
उसके छोटे-छोटे कंधों पर एक प्यारा-सा गुलाबी बैग टंगा था, और उसके नन्हे हाथों में उसकी सबसे प्रिय गुड़िया थी, जिसे वह ऐसे पकड़े हुए थी जैसे कहीं कोई छीन न ले। उसकी दो छोटी-छोटी चोटियां उसके मासूम चेहरे को और भी क्यूट बना रही थीं। उसने शॉर्ट्स और एक नन्हा-सा क्रॉप टॉप पहन रखा था, जिसमें वह किसी टेडी बियर जैसी प्यारी लग रही थी।
यह थी इस कहानी की नन्ही नायिका-अधीरा।
अनुकृति और धीर चौहान की राजकुमारी, जो अपने माता-पिता की जान थी। धीर, जो अनुकृति की तरह ही एक मशहूर डॉक्टर था- सुलझा हुआ, गंभीर, और अपने परिवार से बेइंतहा प्यार करने वाला इंसान। उसकी दुनिया बस दो लोगों में ही सिमटी-थी- अनुकृति और उनकी नन्ही परी, अधीरा।
अधीरा, जो मासूमियत की एक जीती-जागती तस्वीर थी, जो दुनिया को अपने छोटे-छोटे कदमों से नापने के लिए तैयार थी।
धीर, अनुकृति और नन्ही अधीरा के साथ एयरपोर्ट से बाहर आता है, जहां पहले से ही उनके लिए एक भव्य गाड़ी खड़ी होती है। जयपुर की शान को महसूस करते ही धीर के होंठों पर हल्की मुस्कान उभर आती है, जबकि अनुकृति अधीरा का नन्हा हाथ थामे धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।
छोटी-सी अधीरा, जिसने अभी-अभी भारत की ज़मीन पर कदम रखा था, अपनी बड़ी-बड़ी भोली आँखों से चारों तरफ देखने में मग्न थी। उसकी मासूम निगाहें हर चीज़ को ऐसे देख रही थीं जैसे वह किसी नए, जादुई संसार में आ गई हो।
तभी, उसकी कोमल आवाज़ हवा में घुलती है-
"मम्मा। ये छब कितना कुंदल (सुंदर) है। और देखो ना, कितने सारे ऊँचे-ऊँचे घर! ये सब महल है क्या?"
उसकी मासूमियत भरी बातें सुन अनुकृति की हंसी छूट जाती है। वह अधीरा के छोटे-छोटे गालों को हल्के से सहलाते हुए कहती है-
"हाँ मेरी जान, ये जयपुर है, यहाँ के हर घर में राजकुमार और राजकुमारी रहते हैं!"
"सच्ची मम्मा?" अधीरा की आँखें उत्साह से चमक उठती हैं।
"बिलकुल ! और हमारी गाड़ी तुम्हें ऐसे ही एक बड़े महल में लेकर जा रही है!" अनुकृति प्यार से जवाब देती है।
"तो फिर मैं अपनी गुड़िया को भी दिखाऊंगी! उसे भी सब कुछ देखना है ना।" अधीरा ने अपनी प्यारी सी गुड़िया को और कसकर पकड़ लिया।
धीर और अनुकृति उसकी बातें सुनकर हंस पड़े। अनुकृति अधीरा को गोद में उठाकर गाड़ी में बैठ जाती है, वहीं थीर भी उनके पास बैठ जाता है। ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट करता है, और उनकी कार गुलाबी शहर जयपुर की खूबसूरत सड़कों पर दौड़ पड़ती है। अधीरा खिड़की से बाहर झांककर हर चीज़ को टुकुर-टुकुर देख रही थी, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी-मासूमियत से भरी, उत्सुकता से लबरेज़।
गाड़ी जयपुर यपुर की सड़कों पर अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी, बाहर शाम की हल्की ठंडी हवा माहौल को और खूबसूरत बना रही थी। अनुकृति ने अधीरा को गोद में बिठाया, उसके नन्हे सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर खुद धीर के कंधे पर सिर टिका दिया। बीते सालों की यादें उसके मन में उमड़ने लगीं, एक हल्की मुस्कान उसके होंठों पर खेल गई।
"पता है धीर, " अनुकृति ने धीमे स्वर में कहा, "हम पूरे पंद्रह साल बाद जयपुर लौट रहे हैं। जब हम यहाँ से गए थे, तब हमने अध्याय और अद्विका से वचन लिया था कि एक दिन हमारी बेटी उनकी बहू बनेगी... और आज देखो, हमारा सपना सच होने जा रहा है। हमने कभी नहीं सोचा था कि वो इस वचन की लाज रखेंगे!"
धीर, जो अब भी गाड़ी की खिड़की से बाहर का नज़ारा देख रहा था, उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराया। उसने अपनी पत्नी की तरफ देखा, उसकी आँखों में गर्व की चमक थी।
"वो राजपूत हैं अनुकृति!" धीर की गहरी आवाज़ में एक दृढ़ता थी। "और हम राजपूत अपने प्राण दे सकते हैं, लेकिन वचन नहीं तोड़ सकते !"
अनुकृति उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगी, उसकी आँखों में नमी थी लेकिन वो खुशी के आँसू थे।
"हमारी छोटी अधि के लिए इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता।" वह धीमे से बोली, "हम चाहते हैं कि उसे अद्विका जैसे संस्कार मिलें... हमें अद्विका जैसी बेटी चाहिए, धीर!"
धीर ने एक नजर अपनी गोद में बैठे नन्ही अधीरा पर डाली, जो अपनी गुड़िया से खेलते हुए बीच-बीच में खिड़की से बाहर देख रही थी। उसकी मासूमियत, उसकी भोली-सी मुस्कान, उसके चेहरे पर चमक-सबकुछ अद्विका की झलक लिए हुए था।
"उसे अद्विका के संस्कार ही मिलेंगे अनुकृति," धीर ने आत्मविश्वास से कहा, "क्योंकि वो उसी घर की बहू बनने जा रही है, जहाँ संस्कार सबसे ऊपर होते हैं!"
गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर बढ़ती रही... और उनके दिलों में एक नई उम्मीद जन्म ले रही थी।
जयपुर की सड़कों पर गाड़ी अपनी तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ रही थी। बाहर हल्की ठंडी हवा माहौल को और भी शांत बना रही थी। धीर, अनुकृति और नन्ही अधीरा अपनी दुनिया में मग्न थे, लेकिन उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि अगले ही पल उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदलने वाली है।
अचानक, सामने से एक तेज रफ्तार ट्रक बेतहाशा उनकी ओर बढ़ता हुआ नज़र आया। ड्राइवर ने गाड़ी को सँभालने की कोशिश की, लेकिन ब्रेक लगने से पहले ही गाड़ी का बैलेंस बिगड़ गया। चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई गाड़ी बुरी तरह हिलने लगी, झटके से अधीरा अनुकृति की गोद से छूटकर सीट से टकराई।
"धीर! अधीरा।" अनुकृति ने घबराकर अधीरा को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
गाड़ी बेकाबू होकर सड़क से फिसलती हुई एक बड़े पेड़ से जा टकराई। टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि धीर का सिर आगे कि सीट से जा भिड़ा, वहीं अनुकृति, जो आखिरी पल तक अधीरा को बचाने की कोशिश कर रही थी, सीधे झटके से गाड़ी का दरवाज़ा खुलते ही बाहर जा गिरी।
"मम्मा।" अधीरा की मासूम आवाज़ सड़क पर गूंज उठी, लेकिन अगले ही पल सबकुछ खामोश हो गया।
अनुकृति के सिर पर ज़ोरदार चोट लगी थी, उसका माथा एक बड़े पत्थर से टकराया, और देखते ही देखते उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसके चारों ओर खून ही खून फैल चुका था। धीर भी बेहोश था, और गाड़ी के अंदर नन्ही अधीरा फूट-फूट कर रो रही थी।
सड़क पर हलचल मची, लोग दौड़ते हुए उनकी ओर बढ़े, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी...!!
चैप्टर कैसा लगा कमेंट कर जरूर बताइयेगा मिलते है अगले एपिसोड में तब तक के लिए बाय बड़े बड़े कमेंट कीजियेगा❤️❤️❤️❤️
और अच्छी अच्छी स्टोरी के लिए मुझे फॉलो करना मत भूलना 😉🙃

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