03

Chapter 2

तेज़ रफ़्तार में एक गाड़ी अस्पताल के सामने आकर रुकती है। दरवाज़ा खुलते ही, अध्याय लम्बे-लम्बे कदमों से बाहर निकलता है। ब्लैक श्री पीस सूट में वही पुराना रौब, वही ठंडा, भावहीन चेहरा-जो सालों पहले था, आज भी वैसा ही था। हर क़दम जैसे ज़मीन पर हुकूमत कर रहा हो। उसके पीछे-पीछे अद्विका उतरती है, उसकी आँखों में चिंता की लकीरें थीं, और होंठों पर बुदबुदाती प्रार्थना।

अस्पताल के गलियारे कि तरफ जैसे ही वे बढ़े, वहाँ बैठी हर नज़र, कुछ पलों के लिए ठहर गई। ऑपरेशन थिएटर के बाहर कुर्सी पर धीर बैठा था। उसके सिर पर पट्टी बंधी थी, मगर उसकी गोद में नन्ही-सी अधीरा बेसुध-सी मचल रही थी। उसकी छोटी-छोटी मुट्ठियाँ अपने पापा की शर्ट को जकड़े हुए थीं, आँखों से आंसुओं की धार बह रही थी।

"मम्मा... मम्मा को आउची हुई है!"

उसकी तोतली मासूम आवाज़ अस्पताल के माहौल में गूंज गई।

वहीं अधीरा कि मासूम आवाज़ सुनकर अद्विका का दिल पसीज गया। आँखें भर आईं। पर उससे पहले कि वो अधीरा को सीने से लगा पाती, अध्याय की भारी आवाज़ ने जैसे पूरे माहौल को जकड़ लिया।

"कैसी है अनुकृति ? "अध्याय कि भारी आवाज़ सुन धीर ने नज़रें उठाईं, मगर उससे पहले ही अध्याय के कदम आगे बढ़ चुके थे। उसकी आँखों में कोई भाव नहीं थे, कोई बेचैनी नहीं-बस वही पुरानी ठंडक, वही सड़ती।

अध्याय को देखते ही धीर जैसे खुद को रोक नहीं पाया। उसकी आँखों में ठहरे आँसू अब छलकने को बेकरार थे। झटके से वह अपनी जगह से उठा और सीधे अध्याय के गले लग गया। एक झटके में वह मजबूत बाहें, जिनका सहारा हमेशा से उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा था, उसे फिर से घेर चुकी थीं।

अध्याय के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई, मगर उसकी पलकों के पीछे कुछ टूटता सा महसूस हुआ। उसने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी उंगलियों धीर की पीठ पर ठहरी, फिर धीरे-धीरे थपकने लगीं- जैसे कोई आँधी में कांपते पेड़ को सहारा दे रहा हो, जैसे उसे यकीन दिला रहा हो कि वह अकेला नहीं है।

अस्पताल का सफ़ेद, सन्नाटे में डूबा माहौल इस पल के आगे बेमानी लगने लगा। मगर उस नन्ही मासूम आँखों में उलझन थी। अधीरा, जो अब तक धीर की गोद में दुबकी हुई थी, रुआंसी आँखों से उन दो अनजान चेहरों को देख रही थी-एक कठोर, ठंडा मगर असरदार, और दूसरा कोमल, स्नेह से भरा हुआ।

अचानक अद्विका का दिल पसीज गया। उसने बिना एक पल गंवाए, अधीरा को धीर की गोद

से अपनी बाहों में उठा लिया। अपने आँचल में छुपाते हुए उसने अधीरा को सीने से सटा लिया, जैसे अपनी ममता में उसे समेट रही हो। अधीरा सुबकते हुए उसकी गरम हथेलियों को महसूस कर रही थी, और अद्विका उसकी मासूमियत को।

अध्याय ने धीर को हल्के से खुद से अलग किया, मगर धीर की हथेलियों अब भी उसकी बाजू को थामे हुए थीं। न जाने कितने सवाल, कितनी तकलीफें उसकी आँखों में तैर रही थीं, मगर अध्याय की निगाहें अब भी वैसी ही थीं गहरी, भावशून्य, और वही पुराना रौब लिए हुए।

अधीरा, जो अब भी अद्धिका की गोद में थी, अपनी नन्ही-सी उँगली ऑपरेशन थिएटर की तरफ उठाते हुए सुबक पड़ी। उसकी मासूम आँखों में डर, बेबसी और अनजाना-सा खालीपन था। होंठ कांपते हुए धीरे से फड़फड़ाए, और उसकी तोतली आवाज़ में सिर्फ एक शब्द निकला

"मम्मा..."

उसके छोटे-छोटे हाथ अद्धिका की साड़ी को मुट्ठी में भींच चुके थे, जैसे वह अपने डर को पकड़कर रोक लेना चाहती हो। उसकी मासूमियत और दर्द का यह संगम अद्विका के दिल को गहरे तक भेद गया। उसकी आँखें भीगने लगीं, मगर उसने खुद को संभाला। एक लंबी सांस लेते हुए, उसने अधीरा के बालों में अपनी उंगलियों फिराई, जैसे उसकी मासूम आत्मा को सांत्वना दे रही हो।

अद्विका, खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश करते हुए, अधीरा को प्यार से दिलासा देते हुए कहती है-

"आपकी मम्मा बहुत स्ट्रॉन्ग हैं बच्चा... उन्हें कुछ नहीं होगा।"

उसकी आवाज़ कोमल थी, मगर उसमें छुपी दृढ़ता अधीरा को दिलासा देने के लिए काफी थी। मगर वह जानती थी, सिर्फ़ कह देने से यह नन्ही जान शांत नहीं होगी। इसलिए उसने अपने हाथों से अधीरा के गालों पर कुलक आए आंसुओं को प्यार से पोंछा और हल्के से उसका माथा चूमा।

अद्विका, अधीरा की ठुड्डी ऊपर करते हुए, खुद को मजबूत बनाए रखते हुए कहती है-"अब आप रोना बंद कर दो, ठीक है? आपकी मम्मा बहुत बहादुर हैं, और आपको भी तो उनकी तरह बहादुर बनना है, है ना?"

अधीरा ने अपनी बड़ी-बड़ी भूरी आँखों से अद्विका को देखा, जैसे पहली बार किसी अजनबी में अपनापन ढूंढने की कोशिश कर रही हो। उसके होंठ अब भी कांप रहे थे, मगर उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी।

अद्विका ने हल्की मुस्कान के साथ उसे और करीब कर लिया, अपनी ममता की गर्माहट में समेटते हुए।

समय जैसे ठहर गया था। देखते ही देखते दो घंटे बीत चुके थे, मगर ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा अब तक नहीं खुला था। अद्धिका की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। हर बीतता पल उसकी धड़कनों को और तेज कर रहा था। अनुकृति की चिंता उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी, मगर वह खुद को कमजोर नहीं पड़ने देना चाहती थी।

उसकी गोद में अभी भी नन्ही अधीरा थी, जो मासूमियत से अपना छोटा-सा अंगूठा चूसते हुए ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे की तरफ देख रही थी। उसकी भोली आँखों में एक अजीब-सा खालीपन था, मानो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा हो, मगर फिर भी उसे एहसास था कि उसके जीवन का सबसे कीमती रिश्ता उस दरवाजे के पार है।

वहीं दूसरी तरफ, अध्याय की गहरी नज़रें इस नन्ही बच्ची पर टिक चुकी थीं। वह कुछ देर उसे पूँ ही देखता रहा, फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और अधीरा को अद्धिका की गोद से अपनी बाहों में उठा लिया। उसकी मजबूत और ठंडी बाहों के बीच जब वह मासूम बच्ची आई, तो मानो कुछ बदलने लगा।

अध्याय ने अपनी आवाज़ में जितनी हो सके, उतनी नर्मी लाने की कोशिश की और हल्के से पूछा- "आपको भूख लगी है?"

छोटी-सी अधीरा ने अपनी बड़ी-बड़ी भूरी आँखों से उसे देखा और मासूमियत से दो-तीन बार अपना सिर हिला दिया।

यह देखकर अध्याय के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई। यह अजीब था-अद्विका के बाद अधीरा पहली लड़की थी, जिससे वह इतनी नरमी से बात कर रहा था। उसे खुद भी यकीन नहीं हुआ कि वह इस नन्ही जान के लिए इतनी परवाह महसूस कर रहा है।

बिना देर किए, उसने अपने फोन से अपने असिस्टेंट को मैसेज कर दिया और अधीरा के लिए स्नैक्स मंगवा लिए। उसकी बाहों में नन्ही अधीरा पूरी तरह समा चुकी थी, जैसे वह इस ठंडे मगर अनजाने सुरक्षित एहसास से खुद को जोड़ रही हो।

वहीं कुछ दूरी पर खड़ा थीर, यह सब देख रहा था। उसकी आँखों में हल्की नमी थी। वह देख सकता था कि उसकी नन्ही बच्ची के साथ ये दोनों किस तरह प्यार से पेश आ रहे थे। शायद किस्मत अधीरा को किसी और ही कहानी की तरफ मोड़ रही थी-एक ऐसी कहानी, जो दर्द से शुरू तो हुई थी, मगर शायद आगे चलकर किसी खूबसूरत मोड़ पर जा सकती थी.....

अधीरा को एक नज़र देखने के बाद, अद्विका चुपचाप वहाँ से उठी और धीमे कदमों से अस्पताल में बने शिव मंदिर की ओर बढ़ गई। उसका दिल बेचैन था, आँखों में बेचैनी के बादल उमड़ रहे थे, और मन में हज़ारों सवाल थे। मंदिर में जलते दीयों की लौ हल्की-हल्की कॉप रही थी, जैसे खुद भी किसी अनसुनी प्रार्थना का इंतज़ार कर रही हो। अद्विका काँपते हाथों से घंटी बजाती है और धीरे से घुटनों के बल बैठकर महादेव की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ लेती है।

उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे, लेकिन इस बार उसने उन्हें नहीं पोंछा। वहीं दर्द से भरी उसकी आवाज़ कॉप रही थी, लेकिन हर शब्द में उसकी वेदना झलक रही थी। वह अपनी दर्द भरी आवाज़ में महादेव से गुहार लगाते हुए कहती है-

"महादेव! आप तो न्याय के देवता हैं ना, फिर इस मासूम के साथ इतना अन्याय क्यों कर रहे हैं? आपने ही तो कहा था कि सत्य की हमेशा जीत होती है, फिर उस बच्ची की दुनिया उजाड़ने का फैसला क्यों ले लिया आपने? उसकी माँ ही उसका पूरा संसार है, फिर उस नन्ही जान से उसकी माँ का साया छीनने पर क्यों आमादा हैं? वो बच्ची, जो अभी ठीक से दुनिया को समझ भी नहीं पाई, उसे इतनी बड़ी सजा क्यों दे रहे हैं?"

अद्विका का गला भर आया, लेकिन उसकी प्रार्थना जारी रही। उसने खुद को संभालते हुए आगे कहा-

"महादेव! आप कभी किसी के साथ गलत नहीं करते, फिर अनुकृति के साथ ऐसा अन्याय क्यों? उस मासूम ने अपनी माँ के आँचल से बाहर की दुनिया अभी देखी भी नहीं, वो कैसे रहेगी अपनी माँ के बिना? जब वो रात में डरकर उठेगी, तो कौन उसे अपनी गोद में सुलाएगा? जब वो भूख से तड़पेगी, तो कौन उसे अपने सीने से लगाकर दूध पिलाएगा? जब वो गिरकर रोएगी, तो कौन उसकी चोट पर फूंक मारेगा? क्या वो छोटी-सी बच्ची अब पूरी उम्र माँ की लोरी सुने बिना ही रहेगी? महादेव! मैंने सुना है कि कोई आपको सच्चे दिल से पुकारे, तो आप उनकी पुकार सुनते हैं। मैं आपको अपनी माँ के लिए नहीं, बल्कि उस मासूम बच्ची की माँ के लिए पुकार रही हैं। उसकी छोटी-सी दुनिया उजड़ने मत दीजिए। महादेव, मैं हाथ जोड़कर विनती कर रही हूँ... अनुकृति को ठीक कर दीजिए, उस मासूम को उसकी माँ लौटा दीजिए। वो बच्ची सारी उम्र आपकी ऋणी रहेगी, लेकिन प्लीज़, उसकी दुनिया को अंधकार में मत धकेलिए।"

अद्धिका की आँखों के सामने अधीरा का मासूम चेहरा घूमने लगा। उसकी छोटी-छोटी उंगलियाँ, जो हर पल अपनी माँ की साड़ी पकड़ने के लिए बढ़ती होंगी... उसकी बड़ी-बड़ी भूरी आँखें, जो अपनी माँ की गोद के लिए तरसती होंगी... क्या उन आँखों को हमेशा के लिए इंतज़ार ही मिलेगा?

अद्धिका की आवाज़ भर्रा गई थी, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, लेकिन उसकी उम्मीद अभी भी महादेव की मूर्ति पर टिकी थी। उसकी आँखों से गिरते आँसू मंदिर के संगमरमर की ठंडी जमीन पर गिरते रहे, लेकिन उसकी प्रार्थना की तपिश पूरे माहौल में घुल चुकी थी। वह जवाब की प्रतीक्षा में मूर्ति को देखती रही... जैसे अपने महादेव से कोई निशानी चाहती हो कि उसकी गुहार सुनी गई है।

शाम का वक्त था। राणा हवेली के बाहर एक काली कार आकर रुकी। कार रुकते ही दरवाजा खुला और अंदर से अधिक उतरा। कंधे पर स्कूल बैग था, चेहरे पर वही अकड़, चाल में रौब और आँखों में गुस्सा। उसके पीछे-पीछे धीरज भी कार से उत्तरा और दोनों हवेली के अंदर चले गए।

जैसे ही अधिक ने हवेली में कदम रखा, उसने ऊँची आवाज़ में पुकारा- "माँ सा! मैं आ गया!"

उसकी आवाज़ पूरे घर में गूँज गई। रसोई में काम कर रही धरा सुनते ही बाहर आई और मुस्कुराते हुए बोली-

"अधिक! आप आ गए? जाकर हाथ-मुँह थो आइए, मैं कुछ खाने को भिजवाती हूँ।"

अधिक ने उसकी बात पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। उसकी आँखों में हल्की बेरुखी थी। उसने सीधा सवाल किया- "काकी सा, माँ सा कहाँ हैं?"

धरा कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उसकी दादीसा पास आ गई। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। उन्होंने प्यार से कहा-

"आपके माँ सा और बाबा सा आपकी होने वाली दुल्हन को लेने गए हैं... आपकी छोटी सी बालिकावधू, हमारी बिंदनी!"

यह सुनते ही अधिक के चेहरे का रंग ही बदल गया। उसकी आँखों में साफ गुस्सा झलकने लगा। उसने एक झटके में अपना बैग फर्श पर पटका और दादीसा की तरफ देखा।

"बालिकावधू?"

उसकी आवाज़ में गुस्सा था, चिढ़ थी, और सबसे ज्यादा घृणा थी। उसने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं, दाँत भींचते हुए एक कड़वी हँसी हंसा और ठंडे स्वर में बोला-

"आप सब पागल हो गए हैं क्या? मैं सिर्फ पंद्रह साल का हूँ। इस उम्र में कोई शादी करता है क्या?"

यह कहते हुए उसका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा था। उसने एक झटके से अपनी टाई ढीली की और आगे बढ़ते हुए कहा-

"मतलब, अभी मैं स्कूल जाता हूँ, मैथ्स और साइंस पढ़ता हूँ, और आप लोग मेरे लिए दुल्हन लाने चले गए? Seriously? ये कौन सा टाइम ट्रैवल है, जिसमें मुझे 1800 के जमाने में भेज दिया गया? दुनिया एडवांस हो चुकी है, लोग 30-35 साल तक शादी नहीं कर रहे, और आप लोग यहाँ 15 साल के लड़के की शादी फिक्स कर रहे हैं? मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है इस सब में। यह जबरदस्ती का रिश्ता मेरे लिए नहीं है।"

उसने उहाका लगाया, मगर उसकी हँसी में गुस्सा था। वह चाहकर भी अपना गुस्सा इस वक़्त काबू नहीं कर पा रहा था।

उसने गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद करके एक बार फिर अपनी भारी आवाज़ में कहा-"मैं किसी की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ, और न ही किसी को अपने सिर पर बैठाने के लिए! यह सब बचपन में शादी करने वाले फालतू के रीति-रिवाज मेरे लिए नहीं हैं।"

इतना कहकर वह गुस्से में अपनी स्कूल की शूज़ खोल वहीं ज़मीन पर पटकता हुआ सीढ़ियों की तरफ बढ़ा। दादीसा और धरा उसकी नाराजगी महसूस कर रही थीं, मगर अधिक को समझाना इतना आसान नहीं था... वह कितना जिद्दी था, इस बात से अभी वाकिफ थे! धीरज भी चुपचाप अपने भाई सा के पीछे पीछे चले गया!

ऑपरेशन थिएटर का लाल बल्ब बुझते ही धीर का दिल धड़क उठा। अगले ही पल, दरवाज़ा खुला और डॉक्टर बाहर निकले। धीर ने बिना एक पल गंवाए उनकी ओर लपकते हुए सवालों की झड़ी लगा दी-

"डॉक्टर, कैसी है मेरी अनु? वो ठीक तो है ना? आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे? ऑपरेशन सफल हुआ ना? मैं उसे देख सकता हूँ ना? डॉक्टर, प्लीज कुछ तो कहिए।"

धीर की बेचैनी उसके हर शब्द में झलक रही थी। उसकी आँखों में डर और उम्मीद दोनों का सैलाब था। मगर डॉक्टर की आँखों में एक अजीब सी खामोशी थी, एक ऐसा ठहराव जो किसी दर्दनाक सच की आहट दे रहा था। उन्होंने गहरी साँस लेते हुए शांत स्वर में कहा-

"हमनें पूरी कोशिश की, मगर... पेसेंट के सिर के पिछले हिस्से में गंभीर चोट आई थी। दिमाग के जिस हिस्से पर चोट लगी थी, वहाँ ब्लड क्लॉट बन गया था। चोट इतनी गहरी थी कि ब्रेन हैमरेज हो गया... और अब... हम उन्हें नहीं बचा पाए।"

डॉक्टर की बात सुनते ही धीर के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी साँसें तेज हो गई, हाथ काँपने लगे। और उसने अविश्वास से अपनी कांपती हुई आवाज़ में कहा-

"नहीं... नहीं, ये नहीं हो सकता। डॉक्टर, आप झूठ बोल रहे हैं। अभी तो... अभी तो मैं उससे बात कर रहा था। उसने वादा किया था कि वो मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएगी... आप फिर से चेक करिए, कुछ तो होगा! आप डॉक्टर हैं, आपको कुछ करना होगा।"

धीर डॉक्टर के सफेद कोट को पकड़कर हिलाने लगा, उसकी आवाज़ चटक रही थी, मगर डॉक्टर ने बेहद धीमे स्वर में बस इतना कहा-

"उनके पास बस कुछ मिनट हैं... और वो मिस्टर और मिसेस राणा से मिलना चाहती हैं।"

इतना कहकर डॉक्टर वहाँ से चले गए, मगर धीर अब भी पत्थर की तरह जड़ खड़ा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी अनु... उसकी अनु अब उससे हमेशा के लिए दूर जाने वाली थी। आँसू उसकी आँखों से निकलकर चेहरे पर बहने लगे।

उसका पूरा जिस्म सुन्न पड़ चुका था, लेकिन दिल एक ही बात चीख रहा था- "अनु को कुछ नहीं होगा... अनु को कुछ नहीं होगा..."

मगर उसकी दुनिया बिखरने वाली थी... और वह इस सच से भाग नहीं सकता था।

ऑपरेशन थिएटर के बाहर एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। धीर घुटनों के बल वहीं बैठा था, उसकी आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। हाथ अब भी डॉक्टर का कोट पकड़ने के लिए बढ़ रहे थे, लेकिन डॉक्टर जा चुके थे, और उसके सवालों के जवाब अब किसी के पास नहीं थे।

जहाँ धीर पूरी तरह टूटकर बिखर चुका था, वहीं नन्ही अधीरा अपने पापा को इस हाल में देखकर खुद भी फूट-फूटकर रोने लगी थी। उस मासूम को कुछ समझ नहीं आ रहा था, मगर उसके छोटे-छोटे हाथ अपने पापा के गालों को छूकर उसके आँसू पोंछने की कोशिश कर रहे थे।

"प.. पापा रोओ मत..." उसकी तोतली आवाज़ के बीच सिसकियाँ थीं।

अधीरा को इस तरह रोते देख अद्विका की आँखें भी छलक आई। उसने झट से नन्हीं अधीरा को गोद में उठा लिया और अपने सीने से लगा लिया। उसकी उंगलियों धीरे-धीरे बच्ची के सिर को सहलाने लगीं, मगर उसकी खुद की आँखें भी आँसुओं से नम थीं।

"श्श्शा... मत रो बेटा, मम्मा को अच्छा नहीं लगेगा..." अद्विका ने अधीरा को चुप कराते हुए कहा, मगर खुद की आवाज़ भी उसकी भारी हो चली थी।

धीर एक पल को काँप उठा। अनुकृति के दूर जाने के ख्याल से ही उसके पैर सुन्न हो चुके थे, मगर वह हिम्मत जुटाकर किसी तरह उठ खड़ा हुआ। और ऑपरेशन थिएटर के अंदर चला गया।

ऑपरेशन थिएटर के अंदर मशीनों की बीप-बीप करती आवाजों के बीच, सफेद चादरों में लिपटी अनुकृति हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देख रही थी। उसकी साँसें कमजोर पड़ रही थी, चेहरा सफेद हो चुका था, मगर आँखों में वही पुरानी चमक थी। और उसकी आँखों में धीर के लिए प्यार और बेइंतहा अपनापन नज़र आ रहा था।

धीर एक झटके में उसके पास पहुँचा और काँपते हाथों से उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखें अनुकृति के चेहरे को जैसे अपने आँखों में बसा लेना चाहती थीं, अपनी आत्मा में बसा लेना चाहती थीं।

"अनु... तुम्हें कुछ नहीं होगा।" उसने काँपती आवाज़ में कहा और झुककर उसका माथा चूम लिया। उसकी गर्म साँसें अनुकृति की ठंडी होती त्वचा से टकराईं, और एक पल को ऐसा लगा जैसे धीर अपनी पूरी जान उसमें भर देना चाहता हो।

"मैं तुम्हें बचा लूंगा... मैं दुनिया के सबसे बड़े डॉक्टर को बुलाऊँगा, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा.... अनु, तुम... तुम बस मेरी बात मानी।"

यह कहते हुए धीर की आवाज़ में एक बेबसी थी, एक गहरी टूटन जो उसे अंदर ही अंदर खा रही थी।

अनुकृति ने हल्का मुस्कुराते हुए उसकी उंगलियों को अपनी कमजोर उंगलियों से धीरे से दबाया। उसकी आँखों में नमी थी, मगर, चेहरा शांत था।

अनुकृति ने अपनी टूटी फूटी आवाज़ में कहने की कोशिश की "धीर... कुछ रिश्ते... कुछ जिंदगियों... किसी के रोके नहीं रुकीं..."

उसकी आवाज़ इस वक़्त धीमी थी, मगर उसमें प्यार की गर्माहट बेसुमार थी।

धीर ने उसकी बातो पर सिर हिला दिया, उसकी आँखों में आँसू अब रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। लेकिन फिर भी वो अनुकृति को दूर जाते नहीं देख सकता था, वो ना में सर हिलाते हुए कहता हैं-

"नहीं... तुम ऐसा कुछ मत कहो... मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपने पास रखूँगा। तुम कहीं नहीं जा रही हो!"

यह सुनते ही अनुकृति की आँखों में हल्की चमक आई। उसने धीर के चेहरे को देखा, उसकी आँखों में समाया प्यार महसूस किया और बेहद धीमे स्वर में बोली- "तो मेरी आखिरी ख्वाहिश पूरी करोगे?"

धीर का दिल धड़क उठा। उसने जल्दी से सिर हिलाया। और कहा "तुम कहो... मैं सब करूँगा अनु... सबकुछ!"

अनुकृति ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। और कहा- "तो बस... मुस्कुराओ मेरे लिए..."

धीर की आँखें हैरानी से फट रह गयी, और उसने एक बार फिर कांपती आवाज़ में कहा- "अनु नहीं... ऐसा मत कहो... तुम ठीक हो जाओगी, फिर हम साथ हँसेंगे... ऐसे नहीं... प्लीज!"

ऑपरेशन थिएटर की ठंडी हवा में घुला भारीपन उन दोनों की साँसों पर भारी पड़ रहा था। धीर, जो अब तक अपनी अनुकृति की हथेलियों को कसकर थामे बैठा था, उसकी आँखों में आँसुओं का सैलाब था। उसके हाथ काँप रहे थे, दिल दहाड़ें मारकर रोना चाहता था, मगर शब्द गले में अटक गए थे।

तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा फिर से खुला।

और अद्विका अधीरा को अपनी गोद में लिए अंदर आई, उसके पीछे अध्याय भी था। अधीरा अब भी रो रही थी, उसके नन्हे हाथ अद्विका के गले से कसकर लिपटे हुए थे। जैसे ही उसकी मासूम आँखों ने मशीनों के बीच लेटी अनुकृति को देखा, उसने फूट-फूटकर रोते हुए अपनी नन्ही हथेलियों उनकी ओर बढ़ा दीं-

उसकी तोतली आवाज़ ऑपरेशन थिएटर में गूंज उठी। धीर ने झट से अपनी बेटी की ओर देखा, उसकी मासूमियत देखकर उसका कलेजा और भी फट गया। अद्विका ने खुद को संभाला और धीरे से अधीरा को अनुकृति के बेड पर बैठा दिया।

अनुकृति, जो अब तक अपनी बची-खुची ताकत से मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, अपनी नन्ही बेटी की ओर देखने लगी। उसके चेहरे पर अपार प्रेम छलक रहा था। कमजोर हाथों से उसने अधीरा के बालों को सहलाया, फिर धीरे से नजरें उठाकर अद्विका और अध्याय की ओर देखा। उसकी थकी हुई आवाज़ में अब भी वही स्नेह था!

अनुकृति अपनी कांपती हुई आवाज़ में अध्याय और अद्विका को देखते हुए कहती है- "तुम दोनों को अपने सालों पहले किए गए वादे याद हैं ना?"

उसकी साँसें धीमी हो रही थीं, मगर आँखों में एक चमक थी, जैसे वो अपने अंतिम क्षणों में भी कुछ अधूरा नहीं छोड़ना चाहती थी।

अद्विका ने गहरी सांस भरी, उसकी आँखें नम थीं। हल्की मुस्कान के साथ उसने धीरे से सिर हिलाया और बेहद प्यार से अधीरा की नन्हीं उंगलियों को पकड़कर कहा-

"अच्छे से याद है अनुकृति । हमारी छोटी सी अधीरा... हमारी अधिक की दुल्हन बनेगी।"

उसके शब्दों में भावुकता थी, मगर आवाज़ में दृढ़ता भी थी। वहीं अद्विका की बातें सुनकर अनुकृति की आँखों में हल्की चमक आई। वह धीर की ओर एक नजर डालकर फिर से अद्विका और अध्याय की ओर देखने लगी। उसकी साँसें अब और भारी हो रही थीं, मगर उसने खुद को किसी तरह संभाला। उसकी धीमी आवाज़ में एक और ख्वाहिश झलक रही थी, जब उसने कहा "मेरी एक और ख्वाहिश है..."

उसने प्यार से अधीरा के गालों को सहलाया, उसकी मासूमियत को जैसे अपनी आँखों में बसा लेना चाहती थी। फिर अपनी काँपती हुई आवाज़ में अद्विका की ओर देखा, और एक बार फिर अपनी कांपती आवाज़ में कहा-

"मेरी बच्ची को तुम पालना अद्विका! उसे अपने जैसा बनाना... उसकी माँ बन उसे प्यार देना! दोगी ना उसे वही प्यार, जो मैं उसे नहीं दे पाऊँगी?"

यह कहते हुए उसकी आँखें भर आईं। उसके होंठ कॉप रहे थे, और आवाज़ बेहद धीमी हो गई थी।

अद्विका ने खुद को और अधिक संभालने की कोशिश की, मगर उसकी आँखों से आँसू झर-झर गिरने लगे। वह सिसकते हुए अनुकृति की कमजोर हथेलियों को अपने हाथों में लेती है, उनकी उंगलियों को कसकर थाम लेती है, और नम आँखों से कहती है-

"मैं वादा करती हूँ अनुकृति ! मैं अधीरा को हमेशा अपनी बेटी की तरह रखूँगी, उसे माँ का हर एहसास दूँगी... मैं तुम्हारा ये वादा कभी नहीं तोड़ेंगी!"

उसकी आवाज़ भरी गई थी। वहीं अनुकृति ने अपने सुस्त होते हाथों से अद्विका की हथेलियों को हल्के से दबाया, उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई... मगर अगले ही पल उसकी साँसें और भारी होने लगीं। मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ धीमी पड़ने लगी।

धीर ने घबराकर उसके चेहरे को दोनों हाथों में भर लिया, और कांपती आवाज़ में कहा - "अनु प्लीज... मत जाओ!"

मगर उसकी आँखें अब धीरे-धीरे बंद हो रही थीं। आखिरी बार उसने अपने पति, अपनी बेटी, और अपने परिवार को देखा... उसकी आँखों में अब भी प्यार था, मगर वह धीरे-धीरे बंद हो गईं।

और अगले ही पल... मशीनों की आवाज़ एक सीधी रेखा में बदल गई।

"अनु!!!"

धीर की चीख पूरे ऑपरेशन थिएटर में गूंज उठी। उसने अपनी पत्नी को बाँहों में भर लिया, मगर अब कुछ नहीं बदला जा सकता था।

नन्ही अधीरा, जो अब तक अपनी माँ की बाहों में दुबकने की कोशिश कर रही थी, उसकी मासूम आँखों में अब भी उम्मीद थी। उसने अपनी छोटी सी हथेली से अपनी माँ के चेहरे को छुआ और हिलाते हुए कहा- "मम्मा... उठो ना!"

मगर इस बार कोई जवाब नहीं आया। वहीं कमरे में पहली बार इतना गहरा सन्नाटा था... जिसमें सिर्फ आँसुओं की सिसकियाँ और टूटे हुए दिलों की आवाज़ थी...!!

दिल खोलकर कमेंट कीजिये मेरे प्यारे रीडर्स, और कमेंट में कंजूसी नहीं चलेंगी! मिलते है नेक्स्ट एपिसोड में तब तक के लिए बाय❤️

Write a comment ...

Khushi

Show your support

You support motivates me to bring more new interesting stories for you☺️

Write a comment ...